Monday, September 23, 2019

तमिलनाडु से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य


तमिलनाडु से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

तमिलनाडु से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
जब भारत में अंग्रेजों का शासन था, उस दौरान तमिलनाडू मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा था।  आजादी मिलने के बाद मद्रास प्रेसीडेंसी का विभाजन कर दिया गया, जिसकी वजह से मद्रास एवं अन्य राज्यों का उद्भव हुआ था| सन् 1968 के दौरान मद्रास प्रांत का नामकरण तमिलनाडु के रूप में कर दिया गया|
तमिलनाडु का इतिहास
       तमिलनाडु का इतिहास बहुत पुराना है| यद्यपि प्रांरभिक काल के संगम ग्रंथो में इस क्षेत्र का इतिहास का अस्पष्ट उल्लेख मिलता है किन्तु तमिलनाडु का लिखित इतिहास पल्लव राजाओ के समय से ही उपलब्ध है। तमिलनाडु भारत के कुछ स्थानों में से एक है जो प्रागैतिहासिक काल से आज तक आबाद है| प्रारम्भ में यह तीन प्रसिद्ध राजवंशो की कर्मभूमि रही है चेर, चोल और पांड्य। तमिलनाडू के प्राचीन साहित्य में यहाँ के राजाओं, राजकुमारों तथा उनके प्रशंसक कवियों का विवरण मिलता है| विशेषज्ञ मानते हैं कि यह साहित्य ईसा के बाद की कुछ प्रांरभिक सदियों का है|
      तमिलनाडू के उत्तर में स्थित मेरुर ग्राम, जहां से पल्लव और चोल काल के लगभग 200 अभिलेख मिले हैंचोल पहली सदी से लेकर चौथी सदी तक मुख्य अधिपति रहे| इनमें प्रमुख करिकाल चोल का है जिसने अपने साम्राज्य का विस्तार कांचीपुरम तक किया| चौथी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में पल्लवों का सूत्रपात हुआ अंतिम पल्लव राजा अपराजित थे, जिनके राज्य में लगभग दसवीं शताब्दी में चोल शासको ने विजयालय और आदित्य के मार्गदर्शन में अपना महत्व बढाया। 11वीं शताब्दी के अंत में तमिलनाडु पर चालुक्य, चोल, पांड्य जैसे अनेक राजवंशो का शासन रहा इसके बाद के 200 वर्षो तक दक्षिण भारत में चोल साम्राज्य का आधिपत्य रहा तमिल का संगम साहित्य चेर, चोल वंश और पांड्य वंशो के शासनकाल में पचाईमलाई पहाड़ियों में फला और फुला हैचोल राजाओं ने वर्तमान तंजावुर जिला और तिरुचिरापल्ली जिले तक अपने राज्य का विस्तार किया। इस काल में चोल राजाओं ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया। तीसरी सदी के कालभ्रो के आक्रमण से चोल राजाओं का पतन हो गया। कालभ्रो को छठी सदी तक, उत्तरी भागो में पल्लवों तथा दक्षिण भारत में पांड्यो ने हराकर भगा दिया।
तमिलनाडु की भौगोलिक स्थिति
      तमिलनाडु को धरातलीय दृष्टि से दो भागों में बांटा जा सकता है। पहला पूर्वी तटीय मैदान और दूसरा उपजाऊ उत्तर और पश्चिमी की ऊँची भूमि। पूर्वी मैदान का सबसे चौड़ा हिस्सा उपजाऊ कावेरी के डेल्टा पर है जो आगे दक्षिण में रामनाथपुरम और मदुरै के शुष्क मैदान है। राज्य के समूचे पश्चिमी सीमान्त पर पश्चिमी घाट की ऊँची श्रुंखला फ़ैली हुयी है। पूर्वी घाट की निचली पहाडियों और सीमांत क्षेत्र, जो स्थानीय तौर पर जावड़ी कालरायन और शेवरॉय कहलाते हैं प्रदेश के मध्य भाग की ओर फैले हैं। तमिलनाडु की मुख्य नदियाँ कावेरी, पोंनैयार, पलार, वैगई और ताम्ब्रपर्णी आदि है| ये सभी नदियाँ अंतस्थर्लीय पहाड़ियों से पूर्व की ओर बहती हैं| कावेरी और उसकी सहायक नदियों से तमिलनाडू में जल की प्राप्ति होती है तथा इन नदियो के जल से विद्युत का उत्पादन किया जाता है। नदियों के डेल्टा की जलोढ़ मिटटी की प्रचुरता के साथ-साथ यहाँ की मुख्य मिट्टियों में चिकनी मिटटी, दोमट मिटटी, रेतीली मिटटी और लाल मिटटी पायी जाती है। कपास उत्पादक काली मिट्टी रेगुर के नाम से जानी जाती है और यह पश्चिम में सलेम एवं कोयम्बटूर, दक्षिण में रामनाथपुरम एवं तिरुनेलवली तथा मध्य में तिरुचिरापल्ली के कुछ हिस्सों में पायी जाती है|

तमिलनाडु की जलवायु और वनस्पति
    तमिलनाडू राज्य की जलवायु मुख्यतः उष्णकटिबंधीय है| ग्रीष्मकाल में तापमान यदा-कदा ही 43 डिग्री से ऊपर और शीत ऋतू में 18-24 डिग्री से नीचे जाता है| दिसंबर और जनवरी में न्यूनतम तथा अप्रैल और जून में अधिकतम तापमान रिकॉर्ड किया जाता है। औसत वार्षिक वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी और पूर्वोत्तर मानसून पर निर्भर है तथा यह मुख्यत: अक्टूबर से दिसम्बर के बीच और प्रतिवर्ष 635 मिमी से 1905 मिमी के बीच होती हैअधिकांश वर्षा नीलगिरी एवं अन्य पर्वतीय क्षेत्रो में और सबसे कम रामनाथपुरम तथा तिरुनेल्ल्व्ली जिलों में होती है| राज्य के लगभग 15 प्रतिशत हिस्से में वन है| पश्चिमी घाट के उच्चतम शिखरों वाले पर्वत नीलगिरी, अन्नामलाई और पालनी पहाड़ियां उपआल्पीय वनस्पतियों को सहारा देते हैं| पश्चिमी घाट के पूर्व की ओर तथा उत्तरी एवं मध्यवर्ती जिलो की पहाड़ियों की वनस्पतियों में सदाबहार एवं पर्णपाती वृक्षों के मिश्रित वन हैं जिनमें से कुछ शुष्क परिस्थितियों के काफी अनुकूल हैं| वनों से प्राप्त काष्ट उत्पाद में चदंन, पल्पवुड और बाँस शामिल हैं| यहाँ के वनों में रबर के वृक्ष बहुतायत से पाए जाते हैं| यहाँ के जलीय पक्षियों का प्रतिनिधित्व वेदांतनगल स्थित पक्षी अभ्यारण्य करता है जबकि अन्य वन्य प्राणियों को मुदामलाई स्थित आखेट अभयारण्य में देखा जा सकता है|
तमिलनाडू का जनजीवन और संस्कृति
    तमिलनाडु की अधिकतर जनसंख्या प्राचीन द्रविड़ जाति के वंशज है| ज्यादातर पर्वतीय जनजातियां दक्षिण-पूर्व एशियाई लोगों से साम्यता प्रदर्शित करती है| भारत के संविधान द्वारा भेदभाव वर्जित करने के बावजूद, तमिलनाडू में शेष भारत की तरह जाति व्यवस्था अभी भी मजबूती से कायम है। तमिलनाडू में प्रमुख रूप से तमिल भाषा बोली जाती है जो इस प्रदेश की राजकीय भाषा है| जनसंख्या का एक बड़ा भाग, जो काफी समय से इस राज्य में रह रहा है उसके लिए तमिल लगभग मातृभाषा बन चुकी है| जनसंख्या का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा तेलुगु बोलता है जबकि कन्नड़, उर्दू और मलयालम अपेक्षाकृत कम लोगों द्वारा बोली जाती हैं| पश्चिम में नीलगिरी जिले में कन्नड़ और मलयालम अपेक्षाकृत ज्यादा प्रचलन में है| अंग्रेजी का उपयोग सहायक भाषा के रूप में होता है| राज्य में मुख्यत: हिन्दू, इसाई, इस्लाम और जैन धर्म के लोग हैं| पहले तीन धर्मों को मानने वाले लोग सभी जिलों में पाए जाते हैं लेकिन जैन धर्म उत्तरी और दक्षिणी ओर्कार्ट तथा चेन्नई तक सीमित है| जनसंख्या का अधिकांश भाग हिन्दू है। इसाइयो की सर्वाधिक उपस्थिति तिरुनेलवेली और कन्याकुमारी जिलो में है| हाल ही में निरीश्वरवाद सम्भवत: ब्राह्मण कर्मकाण्ड के विरोध के रूप में विकसित हुआ है| तमिलनाडू भारत के सबसे ज्यादा शहरीकृत राज्यों में से एक होने के बावजूद भी यहाँ की ज्यादातर जनसंख्या ग्रामीण ही है| जनसंख्या  का अधिकांश हिस्सा 64 हजार से ज्यादा केंद्रीकृत गाँवों में रहता है| निर्धनतम निम्न जाति के लोग सेरी नामक पृथक क्षेत्रो में रहते हैं| औद्योगिक क्षेत्र , नगरीय क्षेत्र और चेन्नई के आसपास के गाँव चेन्नई महानगरीय विस्तृत शहरी क्षेत्र भी हैं जिनमे मदुरै , कोयम्बटूर और तिरुचिरापल्ली सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| हिन्दू आबादी की निम्न जाति हरिजन की स्थिति अभी भी सोचनीय ही है यद्यपि हरिजन कल्याण विभाग उनकी शिक्षा, आर्थिक और घरेलू स्थिति को सुधारने के कार्यक्रमों की देखरेख करता हैराज्य के सरकारी पदों के आरक्षण के साथ-साथ विधानसभा और लोकसभा में भी उनके लिए सीटे आरक्षित है| यद्यपि इस राज्य में हिन्दू, इस्लाम, इसाई और जैन धर्म के मानने वाले व्यक्ति निवास करते हैं फिर भी यहाँ हिन्दू धर्म और संस्कृति की प्रधानता है| हिन्दू धार्मिक और सेवार्थ विभाग अपने अंतर्गत आने वाले 9300  से भी ज्यादा बड़े मन्दिरों पर प्रशासनिक नियन्त्रण रखता है| विशेषकर चिदम्बरम, कांचीपुरम, तंजावर, और मदुरै समेत अधिकाँश नगरों में गोरुपम छाए हुए हैं। मन्दिर उत्सव चक्र श्रधालुओ को आकर्षित करता है| उनमें सबसे प्रसिद्ध रथ उत्सव है जिसमें मूर्तियों से सुसज्जित रथों की शोभायात्रा के साथ मन्दिर के चारों ओर परिक्रमा कराई जाती है| हिन्दू परिवार विभिन्न मतों के प्रमुख संस्थानों या मठो से जुड़े हुए हैं| कुम्भकोणम का शंकरमठ सबसे महत्वपूर्ण है| तमिलनाडू का मुख्य नृत्य भरतनाट्यम तथा कर्नाटक संगीत काफी प्रसिद्ध है, यद्यपि चित्रकला एवं मूर्तिकला कम विकसित है फिर भी यहाँ पत्थर और कांसे की मूर्तियां बनाने की कला की शिक्षा के लिए विद्यालय है| तमिल साहित्य ने तेजी से लघुकथाओं एवं उपन्यासों के पश्चिमी साहित्यिक स्वरूप को अपनाया है| सुब्रह्मण्यम भारती पारम्परिक तमिल कविता को आधुनिक बनाने वाले प्रारम्भिक कवियों में से एक थे| सन् 1940 के दशक से चलचित्र जन मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम बना हुआ है| यहाँ चलते फिरते और स्थायी दोनों प्रकार के सिनेमाघर है| भावनात्मक और भव्य फिल्मों, जिनमें प्राय: हल्का-फुल्का संगीत और नृत्य होता है का निर्माण अधिकतर चेन्नई के आसपास स्टूडियो में होता है|

प्रस्तुति
प्रशांत कुमार दुबे
प्रबंधक (विधि)
एमएमटीसी लिमिटेड, क्षे.का. - चेन्नै

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