Monday, September 23, 2019

तेनालीराम और अरबी घोड़ा


तेनालीराम और अरबी घोड़ा
महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में एक दिन एक अरब प्रदेश का व्यापारी घोड़े बेचने आता है। वह अपने घोड़ो का बखान कर के महारातेनालीराम और अरबी घोड़ाज कृष्णदेव राय को सारे घोड़े खरीदने के लिए राजी कर लेता है तथा अपने घोड़े बेच जाता है। अब महाराज के घुड़साल इतने अधिक घोड़े हो जाते हैं कि उन्हें रखने की जगह नहीं बचती, इसलिए महाराज के आदेश पर बहुत से घोड़ों को विजयनगर के आम नागरिकों और राजदरबार के कुछ लोगों को तीन महीने तक देखभाल के लिए दे दिया जाता है। हर एक देखभाल करने वाले को घोड़ों के पालन खर्च और प्रशिक्षण के लिए प्रति माह एक सोने का सिक्का दिया जाता है।
विजयनगर के सभी नागरिकों की तरह चतुर तेनालीराम को भी एक घोड़ा दिया गया। तेनालीराम ने घोड़े को घर ले जाकर घर के पिछवाड़े एक छोटीसी घुड़साल बनाकर बांध दिया। और घुड़साल की नन्हीं खिड़की से उसे हर रोज थोड़ी मात्रा में चारा खिलाने लगे।
बाकी लोग भी महाराज कृष्णदेव राय की सौंपी गयी जिम्मेदारी को निभाने लगे। नाराज ना हो जाए और उन पर क्रोधित हो कोई दंड ना दे दें। इस भय से सभी लोग अपना पेट काट-काट कर भी घोड़ों को उत्तम चारा खरीदकर खिलाने लगे।
ऐसा करते-करते तीन महीने बीत जाते हैं। तय दिन सारे नागरिक घोड़ों को लेकर महाराज कृष्णदेव राय के समक्ष इकट्ठा हो जाते हैं। पर तेनालीराम खाली हाथ आते हैं। राजगुरू तेनालीराम के घोड़ा ना लाने की वजह पूछते हैं। तेनालीराम उत्तर में कहते हैं कि घोड़ा काफी बिगड़ैल और खतरनाक हो चुका है और वह खुद उस घोड़े के समीप नहीं जाना चाहते हैं। राजगुरू महाराज  कृष्णदेव राय को कहते हैं कि तेनालीराम झूठ बोल रहे हैं। महाराज कृष्णदेव राय सच्चाई का पता लगाने के लिए तेनालीराम के साथ राजगुरू को भेजते हैं।
तेनालीराम के घर के पीछे बनी छोटी-सी घुड़साल देख राजगुरू कहते हैं कि अरे मूर्ख मानव तुम इस छोटी कुटिया को घुड़साल कहते हो? तेनालीराम बड़े विवेक से राजगुरू को कहते हैं की क्षमा करें मैं आपकी तरह विद्वान नहीं हूँ। कृपया घोड़े को पहले खिड़की से झाँक कर देख लें। और उसके पश्चात ही घुड़साल के अंदर कदम रखें।
राजगुरू जैसे ही खिड़की से अंदर झाँकते हैं, घोड़ा लपक कर उनकी दाढ़ी पकड़ लेता है। लोग जमा होने लगते हैं। काफी मशक्कत करने के बाद भी भूखा घोड़ा राजगुरू की दाढ़ी नहीं छोड़ता है। अंतत: कुटिया तोड़कर तेज हथियार से राजगुरू की दाढ़ी काटकर उन्हें घोड़े के चंगुल से छुड़ाया जाता है। परेशान राजगुरू और चतुर तेनालीराम घोड़े को लेकर राजा के पास पहुँचते हैं।
घोड़े की दुबली-पतली हालत देखकर महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से इसका कारण पूछते हैं। तेनालीराम कहते हैं कि मैं घोड़े को प्रतिदिन थोड़ा सा चारा ही देता था, जिस तरह आपकी गरीब प्रजा थोड़ा भोजन करके गुजारा करती है। और आवश्यकता से कम सुविधा मिलने के कारण घोड़ा और व्यथित और बिगड़ैल होता गया। ठीक वैसे ही जैसे कि आपकी प्रजा परिवार पालन की जिम्मेदारी के अतिरिक्त घोड़े को संभालने के बोझ से त्रस्त हुई।
राजा का कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना होता है। उन पर अधिक बोझ डालना नहीं। आपके दिये हुए घोड़े पालने के कार्य-आदेश से घोड़े तो बलवान हो गए पर आपकी प्रजा दुर्बल हो गयी है। महाराज कृष्णदेव राय को तेनालीराम की यह बात समझ में आ जाती है और वह तेनालीराम की प्रशंसा करते हुए उन्हें पुरस्कार देते  हैं।
-    गोपीनाथ
वरिष्ठ प्रबंधक
एमएमटीसी, क्षे.का.- चेन्नै


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