योग
न सिर्फ लोगों को बीमार होने से बचाता है|बल्कि
वह नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर उनमें सकारात्मक ऊर्जा
भरने का कार्य भी करता है।
आज के मशीनी युग में मानव का जीवन यंत्रवत
हो गया है,तथा उनके सारे कार्य मशीनों
से सम्पन्न होने लगे हैं। इस तरह के माहौल
में स्वयं को शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थरखना
एक बड़ी चुनौतीबन गया है। हमारी दिनचर्या
का
ही परिणाम है कि हमारा जीवन तनाव,बीमारी
व आलस का कारण बनता जा रहा है।
भले
ही विज्ञान की उन्नति ने हमें वो सभी सुख-सुविधा प्रदान कर दी है,जिससे हमारा जीवन आसानी से व्यतीत हो
जाए।
मानव
ने मलेरिया, कैंसर जैसे असाध्य बीमारियों के लिए दवाइयों की खोज करली मगर अभी तक मानसिक शांति
के लिए उनके पास भी कोई जवाब नहीं है।
मगर
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति ने विश्व के लोगों को न सिर्फ शारीरिक व मानसिक
स्वास्थ्य के संबंध में युक्तियाँ प्रदान की है, बल्कि मन
कीशांति के लिए भी एक ऐसी आशा की किरण प्रदान की है।
वह योग
ही है जिसके माध्यम से तनाव, बीमारी,
थकान व अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से पूर्णतः छुटकारा पाया जा सकता है। योग व्यक्ति के मन की शांति प्राप्त करने का
सबसे युक्तिसंगत तरीका है।
योग
का इतिहास
1950 के आसपास योग भारतीय
उपमहाद्वीप से निकलकर पश्चिम के देशों द्वारा कई बार इसपर वैज्ञानिक शोध व परीक्षण
किए गए। उन शोध के नतीजों ने भारतीय योग शिक्षकों
के दावे पर मुहर लगा दी। आज के युग में
योग मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इस
कारण इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है।
योग का शब्दिक अर्थ व परिभाषा
योग शब्द की उत्पति संस्कृत
की यज धातु से हुई है,जिसका शाब्दिक अर्थ होता है जोड़ना या संबन्धित करना। यदि योग
को परिभाषित किया जाए तो यह उस विधा का नाम है, जिससे शरीर व
आत्मा का मिलन अर्थात योग होता है।
भारत में आज से पाँच हजार
वर्ष पूर्व से योग का जन्म माना जाता है।
इसके बारे में पहला प्रामाणिक ग्रंथ पतंजलि द्वारा ‘योगसूत्र’ 200 ईसा पूर्व लिखा गया था।
प्राचीन भारत में रही गुरु
शिष्य परंपरा के चलते यह पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती हुई आज भी जीवित है। इस विधा से आज
करोड़ों लोग लाभान्वित हो रहे हैं, जिनका श्रेय भारतीय योग गुरुओं
जैसे बाबा रामदेव को दिया जाना न्यायसंगत है।
योग के
प्रकार
महर्षि पतंजलि द्वारा लिखे
गये योगसूत्र में पाँच प्रकार के योग का वर्णन किया गया है, जिनमें हठ योग, कर्म योग, ध्यान योग, भक्ति
योग व ज्ञान योग का उल्लेख किया गया है।
ज्ञान का मस्तिष्क से, भक्ति का आत्मा से, ध्यान का मन से तथा कर्म योग का
संबंध कार्यों से माना गया है। साथ ही योग
के 8 अंगों का विधान भी किया गया है जो इस प्रकार है।
1. यम
- हिंसा न करना, सत्य बोलना, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य व धन इकट्ठा न करने की शिक्षा।
2. नियम
- स्वयं अध्ययन, संतोषी स्वभाव, तपस्या, शारीरिक व मानसिक पवित्र आचरण तथा आस्था को नियम में रखा गया है।
3. आसन
–योगसूत्र में विभिन्न 84 शारीरिक क्रियाओं को आसन में शामिल किया जाता है ।
4. प्राणायाम
- श्वास को अंदर लेना, अंदर रोक कर रखना, तथा छोड़ना प्राणायाम मे आता है
।
5. प्रत्याहार
– लौकिक सुख और इच्छाओं को समाप्त कर अपना मन एकाग्रचित्त करना प्रत्याहार कहलता
है।
6. धारणा
– किसी श्रेष्ठ कर्म को मन में धारण कर उसकीअभिप्राप्ति हेतु किया जाने वाला
प्रयत्न धारणा कहलाता है।
7. ध्यान
– अंतरात्मा के साथ अपने मन को इसतरहकेन्द्रित कर देना जिससे संसार के किसी
क्रियाकलाप का उस पर प्रभाव न पड़े।
योग का
जीवन मे महत्व
अब तक के
विवरण से यह स्पष्ट है कि शरीर को स्वस्थ स्थिति में लाकर ही योग किया जा सकता है
तथा किस तरह योग के आठ अंग व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी
है।
मन, आत्मा व शरीर इन तीनों अवयवों को एक कर देना, उनमें
एक स्थापित कर देना ही योग है।
- पी.
एम. तंगमणि
वरिष्ठ
प्रबंधक
एमएमटीसी
लिमिटेड, क्षे.का. – चेन्नै।
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