बाल विवाह : एक सामाजिक समस्या
भारतीय समाज संस्कारों का समाज है। जैसे-जैसे हम
विकास की ओर बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे कामयाबी के साथ चुनौतियाँ हमारे समक्ष बड़ी से
बड़ी खड़ी होती जा रही हैं। कुछ समय पहले बाल विवाह की अनिवार्यता रही होगी, लेकिन
आज के समय में बाल विवाह लड़कियों के लिए जंजीर की तरह है। लड़कियों को बाल विवाह
के बंधन में बांध देना अनुचित ही नहीं, गैर कानूनी भी है।
विकास के इस युग में हर वर्ष बड़ी संख्या में वाल विवाह होने की सूचना मिलती है। यह अभिशाप केवल ग्रामीण समाज में नहीं, शहरी समाज में भी कमोबेश है। बाल विवाह का सबसे बड़ा दोष अशिक्षा है। इस दिशा में अशिक्षा के साथ संकीर्ण सोच भी अपना काम करती है। भारतीय ग्रामीण समाज आर्थिक संकटों से घिरे रहने के कारण वह कम उम्र में बिटिया का ब्याह कर जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहता है। लेकिन शहरी समाज के पास सभी तरह की सुविधाओं के स्रोत होने के बावजूद वहाँ भी बालविवाह की घटनाएँ कमोबेश घटती रहती हैं। लोगों के मन में यह धारणा है कि ब्याह के पहले लड़कियाँ असुरक्षित रहती हैं और ब्याह हो जाने से असमाजिक तत्वों से वह सुरक्षित रहती है। अब यह बात कौन समझाए कि भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार के जो आंकड़े आते हैं, उनमें ब्याहता औरतों की संख्या बड़ी होती है।
लोगों में जागरूकता का अभाव ही बाल विवाह की सबसे
बड़ी चुनौती है। समाज को कम उम्र में बच्चों की शादी के दुष्परिणाम से अवगत कराने
की जरूरत है। इसके लिए समाज के प्रबुद्ध
लोगों को आगे आना चाहिए, क्योंकि बाल विवाह बच्चों के मानसिक एवं शारीरिक विकास के
लिए बाधक है।
बाल विवाह सिर्फ़ भारत में
ही नहीं संपूर्ण विश्व में होते आये हैं और पूरे विश्व में भारत का बाल विवाह में
दूसरा स्थान है। भारत में सबसे अधिक साक्षरतावाले केरल राज्य में अब भी बाल विवाह
प्रचलित है। सरकार के द्वारा विवाह के लिए भारत में लड़की की न्यूनतम आयु 18 वर्ष
और लड़के की आयु 21 वर्ष निश्चित की गई है। इसका मनोवैज्ञानिक आधार यह है कि इस
उम्र तक आते-आते क्रमश: लड़के-लड़की दुनियावी
जिम्मेदारियों से परिचित हो जाते हैं। साथ ही वे मानसिक और शारीरिक रूप से परिपक्व
हो जाते हैं। यदि इस आयु को प्राप्त करने के पहले विवाह करा दिया जाता है तो इसे बाल
विवाह माना जाएगा।
बाल विवाह के कारण :
1 अशिक्षा
2 गरीबी
3 अंधविश्र्वास
4 लड़की की शादी को माँ-बाप द्वारा अपने ऊपर एक बोझ समझना
5 लड़कियों को आर्थिक बोझ समझना
6 सामाजिक प्रथाएँ एवं परंपराएँ
बाल विवाह के दुष्परिणाम :
कम उम्र में शादी होने पर बालक व बालिका की पढ़ाई बंद हो जाती है। लड़की के
अशिक्षित होने के दुष्परिणाम पूरे परिवार पर पड़ता है। वह अपने बच्चे की प्रथम
गुरू होने की भूमिका में भी विफल रहती है। अशिक्षित बालक अपने परिवार का पालन-पोषण
अच्छी तरह से करने में असमर्थ रहता है। बाल विवाह होने के कारण लड़कियों के
व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक खेल-कूद एवं विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में भाग
लेने के अवसर बंद हो जाते हैं। यह स्थिति परिवार, समाज और देश विकास में भी बाधक
है। लड़का भी कम उम्र में विवाह होने पर उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता है और
उसके व्यक्तित्व का विकास भी बंद हो जाता है।
बाल विवाह को रोकने के लिए कानून :
बाल विवाह एक सामाजिक बुराई के साथ कानूनी अपराध भी है। भारतीय संविधान विभिन्न कानूनों और अधिनियमों के माध्यम से बाल विवाह
रोकने का प्रबंध करता है। बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 भारत का एक अधिनियम है जो
1 नवंबर 2007 से लागू हुआ। इसके अनुसार बाल विवाह वह है, जिसमें विवाह के समय
लड़के की उम्र 21 वर्ष से कम या लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम हो। ऐसे विवाह को बाल
विवाह निषेध अधिनियम द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। यदि वे अपने उम्र से कम है,
शादी करने जा रहे हैं तो इसके लिए 15 दिन का कारावास और एक हज़ार रुपए जुर्माने का
प्रावधान है। केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की यह गंभीर समस्या है। इसकी
रोकथाम के लिए यूनिसेफ को इस दिशा में सख्त कदम उठाने की जरूरत है। हमें जन-जन तक
यह बात पहुँचानी होगी कि बाल विवाह एक कानूनी अपराध है। यदि बाल विवाह किया गया,
तो निश्चित रूप से बाल विवाह करने वाले, करवाने वाले और मदद करने वाले कानून की
नज़रों से नहीं बचेंगे और निश्चित रूप से दंडित होंगे। बाल विवाह रोकने के लिए
हमारे देश में कानून मौजूद है, लेकिन कानून के सहारे इसे रोका नहीं जा सकता। बाल
विवाह एक सामाजिक समस्या है। इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही संभव है। समाज में
रहने वाले लोगों को आगे आना होगा तथा लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना होगा। साथ
ही साथ आज के युवा वर्ग को बाल विवाह के विरूद्ध आवाज़ उठाना होगा तथा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान से जुड़कर समाज को इस
सामाजिक कुप्रथा को खत्म करने के लिए जागरूक करना होगा। जब तक बाल विवाह जैसी
सामाजिक कुरीतियाँ हमारे समाज में हैं तब तक हमारे देश का विकास पूर्ण रूप से नहीं
हो सकता है।
- प्रेमा रामकुमार
मुख्य कार्यालय प्रवंधक (नि.स)
क्षेत्रीय कार्यालय, चेन्नै
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