Sunday, March 24, 2019

राजभाषा हिंदी के कार्यान्वयन और प्रसार में कार्यालय प्रमुख का दायित्व : प. रामचंद्रन


राजभाषा हिंदी के कार्यान्वयन और प्रसार में कार्यालय प्रमुख का दायित्व

देश की एकता के लिए राजभाषा हिंदी का कार्यान्वयन और प्रसार आवश्यक समझा गया है। भाषिक विविधताओं से भरे इस देश में एक सामान्य भाषा की दरकार रही है, जो विभिन्न राज्यों के लोगों को जोड़ने का काम करे। हिंदी भाषा की व्यापकता, सरलता और समृद्धि के मद्देनजर हिंदी को इसके लिए उपयुक्त समझा गया और इसे संघ की राजभाषा का दर्जा दिया गया। तत्पश्चात् केन्द्र सरकार के अंतर्गत अथवा अधीन काम करनेवाले कर्मचारियों के लिए राजभाषा हिंदी में कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया गया। जाहिर है, केन्द्र सरकार के कर्मचारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे राजभाषा में कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त करके कार्यालय में अधिक से अधिक काम  राजभाषा हिंदी में करें और कार्यालय से बाहर अपने आसपास भी लोगों को हिंदी सीखने, बोलने के लिए प्रेरित करें। इस प्रकार देशभर में हिंदी को बढ़ावा देने में केन्द्र सरकार के कर्मचारियों से विशेष उम्मीद की जाती है।

      केन्द्र सरकार के कार्यालयों के राजभाषा प्रभाग की जिम्मेदारी है कि वह कार्यालय के कर्मचारियों के हिंदी प्रशिक्षण सुनिश्चित करे। साथ ही हिंदी में कर्मचारियों की कुशलता के लिए गतिविधियाँ आयोजित करते रहे। राजभाषा प्रभाग के कार्यों की देख-रेख, मूल्यांकन, समीक्षा और भावी कार्यों के प्रभावी निष्पादन का दायित्व कार्यालय प्रमुख को सौंपा गया है। इसीलिए संसदीय राजभाषा समिति की सिफारिश पर आदेश जारी करके निदेश दिया गया है कि नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकों में कार्यालय प्रमुख को स्वयं उपस्थित होना है। साथ ही संसदीय राजभाषा समिति की निरीक्षण प्रश्नावली में प्रस्तुत कार्यालयीन आंकड़ों का प्राधिकृत हस्ताक्षरी कार्यालय प्रमुख ही होते हैं। स्पष्ट है कि राजभाषा हिंदी की उत्तरोत्तर प्रगति और प्रसार के लिए कार्यालय के बाहर और अंदर अंततः कार्यालय प्रमुख का ही उत्तरदायित्व सुनिश्चित किया गया है। 
 
   दरअसल कार्यालय प्रमुख सभी प्रभागों/अनुभागों/विभागों के प्रमुख होते हैं, साथ ही वह कार्यालय के वरिष्ठतम अधिकारी होते हैं। वरिष्ठतम अधिकारियों से कर्मचारियों को प्रेरणा मिलती है। यदि वरिष्ठतम अधिकारी हिंदी में काम करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, तो कर्मचारी स्वतः स्फूर्त होकर हिंदी में काम करने लगते हैं। यह देखा गया है कि जिन कार्यालयों के कार्यालय-प्रमुख राजभाषा हिंदी के प्रति रूचि रखते हैं और अपने दायित्वों को समझते हैं, उन कार्यालयों में राजभाषा हिंदी की स्थिति संतोषजनक है। इन कार्यालयों के कार्मिक हिंदी में सहजता से काम करते हैं और इनके कार्मिक न सिर्फ कार्यालय के अंदर की राजभाषा गतिविधियों में बल्कि नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति की गतिविधियों सहित कार्यालय के बाहर होनेवाली अन्य गतिविधियों में भी सक्रिय भागीदारी करते हुए पुरस्कार प्राप्त करते हैं।     

    इसके विपरित जिन कार्यालयों में वरिष्ठतम अधिकारी हिंदी में रूचि नहीं लेते हुए राजभाषा के प्रति अपने दायित्वों की परवाह नहीं करते हैं, वहाँ राजभाषा हिंदी का मुकम्मल कार्यान्वयन नहीं हो पाता है। इन कार्यालयों में कई बार ऐसा भी होता है कि यदि कोई कर्मचारी हिंदी में पत्र, टिप्पणी या मसौदा लेखन करता है तो उसे वरिष्ठ या वरिष्ठतम अधिकारी बुलाकर पूछते हैं कि उसने ऐसा क्यों किया? यदि कर्मचारी के उत्तर से वे संतुष्ट हो जाते हैं तब तो ठीक है अन्यथा उसे दुबारा उसका अंग्रेजी अनुवाद कर प्रस्तुत करना होता है। इस प्रकार के व्यवहार से हिंदी के प्रति रूचि रखनेवाला कर्मचारी भी हतोत्साहित होता है और इससे बचने के लिए  कर्मचारी फिर हिंदी के बजाय अंग्रेजी में ही लिखता है।

    वरिष्ठतम अधिकारी या किसी भी कार्मिक का राजभाषा के प्रति ऐसा व्यवहार न केवल अशोभनीय है, बल्कि वैधानिक रूप से उचित नहीं है। राजभाषा नियम के अनुसार यदि कोई  कर्मचारी किसी फाईल पर टिप्पण या कार्यवृत्त हिंदी में लिखता है, तो उससे यह अपेक्षा नहीं की जाएगी कि वह उसका अनुवाद अंग्रेजी में प्रस्तुत करे। यहाँ कार्यालय प्रमुख का दायित्व है कि वह विभिन्न बैठकों के माध्यम से राजभाषा के इन बुनियादी नीति-नियमों के प्रति अन्य वरिष्ठ अधिकारियों, कार्मिकों को सजग करते रहे।

   कार्यालय में राजभाषा के मुकम्मल कार्यान्वयन के लिए राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय के द्वारा कार्यालय में राजभाषा कार्यान्वयन समिति गठित करने का निर्देश है। कार्यालय प्रमुख इसके अध्यक्ष होते हैं तथा विभिन्न प्रभागों के प्रमुख इसके सदस्य होते हैं और राजभाषा प्रभाग के प्रभारी इसके सदस्य-सचिव होते हैं। तीन महीने में एक बार इस समिति की बैठक अनिवार्य है। इस बैठक में राजभाषा के कार्यों की समीक्षा की जाती है और भावी कार्यों की रूपरेखा खीची जाती है। अध्यक्ष होने के नाते कार्यालय प्रमुख का दायित्व है कि इस समिति की नियमित बैठक सुनिश्चित करें। इस बैठक में जहाँ राजभाषा के नीति-नियमों से प्रभाग/अनुभाग प्रमुखों को अवगत करते हुए अपने-अपने प्रभागों/अनुभागों में इन्हें सुनिश्चित करने के निर्देश दिए जाएं वहीं  राजभाषा वार्षिक कार्यक्रम में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति पर विचार किए जाएं। 

    वास्तव में राजभाषा का कार्यान्वयन प्रेरणा, प्रोत्साहन और सद्भावना के आधार स्तंभ पर टिका है। हिंदी में कार्य करने के लिए कर्मचारियों को समय-समय पर निरंतर प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इसके लिए कार्यालय प्रमुख को कार्यालय में लागू प्रोत्साहन योजनाओं का समय-समय पर जायजा लेकर कार्मिकों को इसके लाभ उठाने के लिए प्रेरित करने चाहिए।  कार्यालय प्रमुख को स्वयं प्रोत्साहन योजनाओं से जुड़ना चाहिए ताकि उनके अधीन काम करनेवाले कर्मचारी इसके लिए प्रेरित हो सकें। कर्मचारियों के आंतरिक मूल्यांकन में राजभाषा संबंधी कार्यों को भी महत्ता दी जाए। इससे कर्मचारियों का राजभाषा के प्रति झुकाव अधिक होगा और वे राजभाषा में दक्षता प्राप्त करने के लिए स्वत: प्रयास करेंगे।

    राजभाषा हिंदी में काम करने में हिचकिचाहट दूर करने के लिए कार्यालय में समय-समय पर कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं तथा कार्मिकों को विभिन्न स्तरों पर प्रशिक्षण दिए जाते हैं। कार्यशालाओं या प्रशिक्षणों के विषय कर्मचारियों की आवश्यकतानुसार रखे जाएँ। कार्यशाला या प्रशिक्षण में शामिल कर्मचारी पढ़ाए गए विषयों को अपने दैनिक कामकाज में उतार रहे हैं या नहीं, इसका भी ध्यान रखने की नितांत आवश्यकता है। इसके अभाव में कार्यशाला या प्रशिक्षण का विशेष लाभ नहीं है। कार्यालय प्रमुख सभी प्रभाग प्रमुखों को सीधा निर्देश दें कि कार्यशाला या प्रशिक्षण में भाग लिये कर्मचारियों के टिप्पण, पत्र, मसौदा, प्रविष्टि, टंकण आदि में यह अवश्य देखें कि वह राजभाषा हिंदी की कार्यशाला, प्रशिक्षण में सीखे गये विषयों को अपने कामकाज में प्रयोग कर रहे हैं, अथवा नहीं। और उन्हें प्रयोग करने के लिए प्रेरित करें।

    कार्यशाला, प्रशिक्षण, बैठक के अलावा राजभाषा को बढ़ावा देने के लिए कवि सम्मेलन, कहानी पाठ, गीत-गायन, नाटक, हिंदी पखवाड़ा आदि कई गतिविधियाँ आयोजित करने की आवश्यकता होती हैं। राजभाषा हिंदी प्रसार की इन गतिविधियों को सांस्कृतिक कार्यक्रम की तरह देखा जाए, जो कि दैनिक कार्यों के बीच रिफ्रेश होने के लिए की जाती हैं। इन गतिविधियों को कड़ी प्रतियोगिता की तरह न आयोजित करके मनोरंजन के पुट के साथ तैयार की जाए, जिसका उद्देश्य सीखना हो। इससे कार्मिक सहजता से अधिक से अधिक संख्या में जुड़ सकेंगे।

     प्रायः राजभाषा हिंदी से संबंधित रिपोर्ट्स को गंभीरता के साथ नहीं देखी जाती हैं। इसे खाना-पूर्ति समझा जाता है। जबकि राजभाषा से संबंधित रिपोर्ट्स बेहद महत्वपूर्ण हैं। ये रिपोर्ट्स समेकित होकर विभिन्न चरणों से गुजरते अंततः राजभाषा संसदीय समिति के पास जाती हैं। राजभाषा संसदीय समिति के सदस्यों के द्वारा नामित सदस्य इसे संसद के सदनों में रखते हैं। अतएव कार्यालय प्रमुख को राजभाषा रिपोर्ट्स को खाना-पूर्ति समझने के बजाए इसकी पूरी जानकारी प्राप्त करते हुए स्वीकृति प्रदान करने की आवश्यकता है।

    जाहिर है कि राजभाषा प्रभाग का दायित्व व्यापक है। यह संवैधानिक सरोकारों से जुड़ा हुआ है। इसके मुकम्मल अनुपालन के लिए राजभाषा प्रभाग में उचित संख्या में कार्मिकों का होना अतिआवश्यक है। कई सरकारी कार्यालयों में राजभाषा प्रभाग में कम संख्या में कार्मिक होते ही हैं, साथ में राजभाषा अधिकारी को अन्य कार्य सौप दिए जाते हैं, जिससे राजभाषा अधिकारी अन्य कार्यों में ही उलझे रहते हैं और राजभाषा कार्यान्वयन का काम न के बराबर हो पाता है। कार्यालय प्रमुख ध्यान रखें कि राजभाषा प्रभाग में कर्मचारियों की संख्या का अनुपात उचित हो।

   राजभाषा का काम एक अभियान है, जिसका उद्देश्य राष्ट्र की एकता, संस्कृति, विकास और गौरव से जुड़ा है। इतने बड़े उद्देश्य के साथ काम करने के लिए बहुत लगन, परिश्रम और धैर्य की आवश्यकता होती है, जिसे समझना चाहिए और उसके अनुसार राजभाषा प्रभाग में काम कर रहे कार्मिकों को प्रोत्साहित करने चाहिए। प्रायः अधिकांश कार्यालयों में राजभाषा प्रभाग को उपेक्षित किया जाता है। कार्यालय के कुछ कार्मिक तो राजभाषा प्रभाग और इसके कार्मिकों को अतिरिक्त भार समझते हैं। कार्यालय की अन्य उपलब्धियों को जहाँ विभिन्न कार्यक्रमों के दौरान उल्लेख किया जाता है, वहीं राजभाषा प्रभाग की उपलब्धियों का नाम तक नहीं लिया जाता है। राजभाषा प्रभाग की सुध तभी ली जाती है, जब संसदीय राजभाषा समिति या किसी अन्य समिति द्वारा निरीक्षण के पत्र प्राप्त होते हैं। ऐसी स्थिति में राजभाषा प्रभाग में कार्य कर रहे कर्मचारियों का उत्साह गिरा हुआ रहता है। राजभाषा प्रभाग और इसमें काम कर रहे कर्मचारियों को उनके काम के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है और कार्यालय प्रमुख द्वारा कार्यालय के सार्वजनिक मंचों से अन्य प्रभागों की उपलब्धियों की तरह इनकी उपलब्धियों का भी उल्लेख करने से राजभाषा प्रभाग का हौसला बुलंद रहेगा और राजभाषा प्रभाग महान देश को एकसूत्र में पिरोने में अपना योगदान उत्साह और उमंग के साथ देता रहेगा।
-    प. रामचंद्रन
महाप्रबंधक
एमएमटीसी लिमिटेड, चेन्नै

2 comments:

Unknown said...

बढ़िया लेख है
श्ीरामचन्द्र जी को हार्दिक धन्यवाद तथा बधाई

Unknown said...

बढ़िया लेख है
लेखक को हार्दिक बधाइयां और धन्यवाद
यह तो अन्य कार्यालय अध्यक्षों के लिए उत्तम नमूना है और वे भी इससे टिप्स लेकर अपने अपने कार्यालय में राजाभाशा कार्यान्वयन को बढ़ा सकते हैं