चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों
में गूँथा जाऊँ ।
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ ।
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे
हरि, डाला जाऊँ ।
चाह नहीं, देवों के सर पर चढ़ूँ,
भाग्य पर इठलाऊँ ।
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ में देना तुम
फेंक,
मातृ-भूमि पर शीश
चढ़ाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक ।
प्रस्तुतकर्ता - पी. तंगमणि
वरिष्ठ प्रबंधक
एमएमटीसी लिमिटेड, चेन्नै
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