कंबन की आँखों से अहिल्या
देशभर में रामकथा के कई पाठ प्रचलित हैं और
जहाँ-जहाँ भारतवंशी गये हैं, वहाँ भी रामकथा के एक से अधिक पाठ प्रचलित हैं।
रामकथा के विभिन्न प्रसंगों का आधार एक होते हुए भी कथावाचक की मौलिक प्रतिभा उनके
वर्णन में अपनी विशेषता डाल देती है, जिसके कारण एक ही कथा के हरेक बार का श्रवण
नवीनता लिये होता है। बांग्ला भाषा में कृत्तिवास रामायण, तेलगु भाषा में भाष्कर
रामायण, संस्कृत में वाल्मीकि रामायण, अवधी भाषा में तुलसी रामायण, ओडिया भाषा में दाण्डि रामायण, कन्नड़ भाषा में
कुमुदेन्दु रामायण, नेपाली में भानुभुक्तकृत रामायण तथा तमिल भाषा में कंबरामायण
आदि विभिन्न भाषाओं में रामकथा के प्रसिद्ध ग्रन्थ उपलब्ध हैं। विभिन्न भाषाओं में
मौजूद इन ग्रन्थों की रामकथा की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। विभिन्न भाषाओं की इन
रामकथाओं के प्रसंगों को भी आधार बनाकर कविताएँ लिखी जाती रही हैं। रामकथा के
विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या में इन कवियों की प्रतिभा निखरकर सामने आती है। तमिल
भाषा के कालजयी कवि कंबन की कृति कंबरामायण की अपनी विशेषताएँ हैं। विभिन्न
प्रसंगों के इनके वर्णन में मानों प्रकृति सजीव हो उठी है। प्रकृति के सुकुमार और
रौद्र दोनों रूपों का साक्षात् दर्शन कंबरामायण की जान है। पात्रों के मनोभावों के
अनुरूप प्रकृति अपना रूप बदलती है। जो प्रकृति खुशी और मिलन के क्षण में हर्षोलास
से भरी है, वही दुख और विरह के क्षण में दुखमय हो जाती है। मानो संयोग में वह मिलन
के फूल बरसा रही है, तो वियोग में विदाई के शूल चुभो रही है।
अहिल्या प्रसंग के वर्णन में कंबन की प्रतिभा चरम पर है। कंबन की लेखनी
अहिल्या के सौन्दर्य में चार चाँद लगा देती है। यह कंबन का ही कमाल है कि अहिल्या
के नख-शिख वर्णन करते हुए कहीं यह अश्लील प्रतीत नहीं होता है। अहिल्या के चरित्र
के समान ही उनका सौन्दर्य वर्णन पवित्रता के अनुपम धागे से बुना गया है। कंबन के
अहिल्या प्रसंग को आधार बनाते हुए श्री एन. कृष्णमूर्ति, मुख्य प्रबंधक, एमएमटीसी,
क्षे.का. – चेन्नै, ने “कंबन की आँखों से अहिल्या” नामक कविता की रचना की है। यह कविता कंबन की सौन्दर्यदृष्टि की
व्यापकता से पाठक का परिचय कराती है। इस कविता में प्रकृति और अहिल्या के नख-शिख
एकमेक हो गये हैं। श्री कृष्णमूर्ति ने कंबन की सौन्दर्यदृष्टि के साथ न्याय करने
की पूरी कोशिश की है। इस कोशिश में इनकी कविता पाठकों के मन पर अमिट छाप छोड़ती है
–
“वह
आसमान में चमकने वाली अनगिनत तारों से भी अधिक चमकती थी…
उसके मोती जैसे दाँतों की चमक के कारण उसका चेहरा रौशन रहता था…
उसकी आँखें हिरण जैसी चंचल थी, मानों मृगलोचनी हो
सुन्दरता के इन उपमानों से वह
सर्वौत्तम प्रतीत होती थी।”
(कंबन की
आँखों से अहिल्या – श्री एन. कृष्णमूर्ति)
अहिल्या की अप्रतिम सुन्दरता लोगों को अभिभूत
करनेवाली है। परंतु सुन्दरता को हड़पने की प्रवृत्ति हरेक समय में रही है। जमाना
ग्वाह है कि सुन्दरता सम्मान पाने से अधिक सामंती प्रवृत्ति की शिकार हुई है। श्री
कृष्णमूर्ति अपनी कविता में उस प्रवृत्ति को बेबाकी से चित्रित करते हैं –
“उसकी सुन्दरता से इन्द्र मोहित था
और वह उसे आलिंग्न में भरना चाहता था
उसकी सुन्दर काया को वह हड़पना चाहता था।”
(कंबन की
आँखों से अहिल्या – श्री एन. कृष्णमूर्ति)
कवि इस प्रसंग को
समकालीन संदर्भों से जोड़ते हुए कथित अत्याधुनिक समाज से सीधा सवाल करता है कि
क्या आज सुन्दरता अपमानित नहीं हो रही है? क्या मौल जानेवाली पीढ़ियों का सौन्दर्य संस्कार
हुआ है? गौर करनेवाली बात है कि कवि सिर्फ
स्थूल सौन्दर्य का रेखाचित्र नहीं खींचता है, बल्कि वह अहिल्या के आंतरिक सौन्दर्य
को भी उद्घाटित करता है। क्योंकि आंतरिक सौन्दर्य के अभाव में बाहरी सौन्दर्य
मात्र एक दिखावा है। आंतरिक और बाह्य सौंदर्य का संतुलन ही चिरंजीवी रहता है,
वरना, बाह्य सौन्दर्य तो चार दिन की चांदनी है –
“उसके
हृदय में कोई अश्लील ख्याल नहीं थे
तथा उसकी जुबान पर कोई कड़वे
शब्द नहीं थे
उसकी बोली हमेशा मध् की मिठास
लिये होती थी।”
(कंबन की आँखों से अहिल्या – श्री एन. कृष्णमूर्ति)
ध्यान
से देखा जाए तो कविता का पाठ स्पष्ट संदेश देता है कि अहिल्या के भीतरी सौन्दर्य
ही उसके बाहरी सौन्दर्य के राज हैं। अहिल्या का उद्धार भगवान राम के माध्यम से
होता है, क्योंकि भगवान राम सद्वृत्तियों के पोषक रहे हैं। वह अच्छाई के खान रहे
हैं, इसीलिए उन्हें पुरूषोत्तम कहा गया है। कवि का भगवान राम में अगाध आस्था है। कवि
स्पष्ट रेखांकित करता है कि हमें सच्चाई के मार्ग पर चलने चाहिए, चाहें राह में
हजार कांटे ही क्यों न हों। इसी में समाज कल्याण है।
भारतवंशी भले ही अपनी माटी से दूर रह रहे
हों, लेकिन उन्होंने अपनी माटी की सोंधी महक को भुलाया नहीं है। उसकी सभ्यता-संस्कृति
और उसे वहन करनेवाले साहित्य को अपनी आत्मा से लगाकर रखा है। वे जिन देशों अथवा
राष्ट्रों में गये उसे तन-मन-धन से समृद्ध ही किया है। महाकवि कंबन के तमिल साहित्य
के अद्भूत योगदान की स्मृति में हुए फ्रांस की राजधानी पेरिस में “कंबन कलगम सोसायटी” के द्वारा समारोह आयोजित किया जाता है, जिसमें कंबरामायण के विभिन्न
प्रसंगों को आधार बनाकर रची गयी उत्कृष्ट रचनाओं और उसके रचयिताओं को पुरस्कृत
किया जाता है। ‘कंबन कलगम
सोसायटी’ के द्वारा आयोजित 16 वें कंबन समारोह के अवसर पर श्री
एन. कृष्णमूर्ति, मुख्य प्रबंधक, एमएमटीसी, क्षे.का – चेन्नै, को उनकी उपरोक्त
कविता “कंबन की आँखों
से अहिल्या” के लिए ‘पावलर’ उपाधि से
सम्मानित किया गया।
समारोह के दूसरे दिन उन्होंने अपनी उपर्युक्त
कविता “कंबन की आँखों
से अहिल्या” का पाठ किया
तथा उसके समकालीन संदर्भों पर चर्चा की। उन्होंने बल दिया कि मनुष्य को राम में
भरोसा रखना चाहिए। ईश्वरीय विश्वास हमें आशावादी बनाता है और संघर्ष करने की ताकत
देता है। समकालीन संदर्भ में राम के चरित्र को अपनाने की आवश्यकता है। हमें उनके
चरित्र अपनाने चाहिए। इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ अंत में उन्होंने आयोजक समिति और
उपस्थित प्रत्येक सदस्यों को हृदय से आभार व्यक्त करते हुए कोटि-कोटि धन्यवाद
अर्पित किया।
- श्री
एन. कृष्णमूर्ति
सेवानिवृत्त उप महाप्रबंधक
एमएमटीसी, क्षे.का. – चेन्नै
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