भाषा शिक्षण में ‘प्रिंट रिच इन्वॉयरमेंट’ का योगदान
भाषा शिक्षण
निरंतर प्रक्रिया है। मनुष्य भाषा के विषयों के अलावा सभी विषयों से सतत् भाषा
सीखता जाता है। यहाँ तक कि भाषा की कक्षाओं के अलावा बचपन से मनुष्य अपने आसपास के
परिवेश से भाषा ग्रहण करते रहता है। यह ग्रहण स्वतः जारी रहता है। स्वाभाविक है कि
आसपास का परिवेश भाषायी दृष्टि से जितना समृद्ध रहेगा, भाषा सीखने में वह उतना ही
मददगार साबित होगा। गाँवों की अपेक्षा शहरों के बच्चों की मानक भाषा पर अधिक पकड़
होती है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि शहर के परिवेश में बच्चों के चारों ओर
दुकानों के साइनबोर्ड, कार्यालयों, स्टेशन, विद्यालय-विश्वविद्यालयों, हॉस्पिटल,
सिनेमा घरों आदि के नेमप्लेटों और प्रचारों की अधिकता तथा विभिन्न
प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की बहुलता होती है, जिससे ये अपने-आप बच्चों की भाषा
के अंग बन जाते हैं। यह सामान्य रूप से वयस्कों पर भी लागू होता है। सहज ही देखा
जा सकता है कि रोजगार के लिए गाँव से शहर आये व्यक्ति की जुबान में उसके व्यवसाय
के शब्द स्वतः इस्तेमाल होने लगते हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो हाल में
महाराष्ट्र के गाँव भिलार को एक विशाल बुकस्टोर में बदल देने की पहल महत्वपूर्ण
है। 10 मई, 2017 को प्रकाशित इंडिया टुडे के अंक में किरण तारे की रिपोर्ट के
अनुसार – “महाराष्ट्र का भिलार गाँव 1 मई को भारत का पहला
(स्वघोषित) किताबों वाला गाँव बन जाएगा। इसकी प्रेरणा वेल्श की किताबों की जन्नत
हे-ऑन-वाये और उसके मशहूर लिटरेचर फेस्टिवल से ली गई है. मशहूर पर्वतीय स्थल
पंचगनी के नजदीक बसे इस ‘पुस्तकाचे गांव’ ने कोई 75 कलाकारों
को न्यौता दिया है जो यहां आकर मंदिरों और स्कूलों सहित 25 इमारतों की दीवारों पर
पेंट करेंगे। इन इमारतों में 10,000 किताबें होंगी।” (पृ. - इंडिया
टुडे, 10 मई 2017). पूरे गाँव को प्रिंट रिच इन्वॉयरमेंट में बदल देने की यह
पहल अद्भूत है। इस गाँव के बच्चे-बड़े-बूढ़ों को इसका फायदा स्वाभाविक रूप से
मिलेगा। वो जाने-अनजाने किताबों के बड़े संसार से परिचित होंगे ही, साथ में उनकी
भाषा स्वाभाविक रूप से समृद्ध होगी।
‘प्रिंट रिच
इन्वॉयरमेंट’ का उपर्युक्त लाभ कार्यालयीन भाषा क्षेत्र में
भी बराबर रूप से लिया जा सकता है। कार्यालय की विशेष ढ़ॉचा और कार्यप्रणाली के
कारण इसकी भाषा बोलचाल और साहित्यिक भाषा से थोड़ा अन्तर लिए होती है, परन्तु यह
अन्ततः भाषा का ही एक रूप है। जाहिर है, बोलचाल अथवा साहित्यिक भाषा में अधिक
दक्षता होने से कार्मिकों के लिए कार्यालयी भाषा का प्रयोग सहज होगा। वाक्य-विन्यास
की अधिक से अधिक समझ विकसित होने के साथ-साथ कार्मिकों का शब्द-भंडार भी स्वभावतः
बढ़ता जाएगा। इन्हीं बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए एमएमटीसी के क्षे.का. – चेन्नै
में कर्मचारियों को समृद्ध भाषायी माहौल प्रदान करने की कुछ पहल की गई। पुस्तकों से
लोगों को जोड़ने के लिए आजादी के बाद से ही सरकार ने कई कदम उठाया है। क्योंकि
पढ़ने की आदत भाषा को मजबूत करती ही है, साथ ही यह सरकार की नीतियों सहित ज्ञान के
सभी क्षेत्रों को स्वतः बढ़ाती है। पुस्तकों से लोगों को जोड़ने के लिए सरकार ने
जिला और जिला के विभिन्न कार्यालयों में पुस्तकालयों की स्थापना और उसके नियमित
संचालन की व्यवस्था की। एमएमटीसी के क्षे.का. – चेन्नै में भी पुस्तकालय के लिए
उपलब्ध किताबों को इस तरह से व्यवस्थित किया गया कि उस पर लोगों की नजर पड़ सके और
वह उसके ‘कवर’ पलटने के लिए
उत्सुक हो सकें। लिखी हुई सामग्री पर नज़र स्वभाविक रूप से टिकती है। इसके लिए कुछ
चुनिंदा अथवा नयी पुस्तकों को अलमीरे से बाहर सामान्य दृष्टि के क्षेत्र में प्रदर्शित
करना ऊचित है। पुस्तकों के पाठक बनाने के लिए सदस्यों को प्रेरित करने की आवश्यकता
होती है। इसके लिए पुस्तकालय से संबंधित व्यक्ति को पुस्तकालय की किताबों की विषयवस्तु की जानकारी होनी चाहिए
ताकि वह पाठकों से किताब की विषयविस्तु पर बात करते हुए, उनमें रूचि पैदा कर सकें।
शुरू-शुरू में यह कार्य करना थोड़ा मुश्किल भरा लगता है, परंतु धीरे-धीरे लोग
जुड़ते चले जाते हैं। पुस्तकालय के लिए पत्र-पत्रिकाएँ संजीवनी के समान हैं।
पत्रिकाएँ समय की घटनाओं और समाज की हलचलों को तथ्यात्मक और विश्लेषणपरक रूप से
दर्ज करती ही हैं साथ में ये पाठकों का आकर्षण बढ़ाने के लिए व्यंजन बनाने की
विधियाँ, यात्रा के लिए रमणीय स्थलों की जानकारी आदि परोसती रहती हैं। हरेक अंक की
इन सामाग्रियों की जानकारी सदस्यों को देते हुए पढ़ने के प्रति उनके आकर्षण को
बढ़ाया जा सकता है। क्षे.का. - चेन्नै में ये पहल धीरे-धीरे कारगर साबित हो रही
हैं। अक्सर पुस्तकालय में उपलब्ध विविध किताबों की जानकारी कार्यालय के सदस्यों को
नहीं के बराबर होती है। बाजार का नुस्खा ग्राहकों को अपनी सारी सामग्रियों की
बेहतर से बेहतर जानकारी देने की होती है। एक साड़ी की बिक्री के लिए दुकानदार
साड़ियों के बंडल के बंडल खोल कर रख देते हैं। कई बार पचास-सौ साड़ी दिखा देने के
बाद भी एक की भी बिक्री नहीं होती है, पर वे उदास नहीं होते हैं। उनके निशाने दूर
के होते हैं। दुकानदार जानते हैं कि ये ग्राहक इन साड़ियों का जिक्र अपने एक से
अधिक साथियों से जरूर करेंगे। यह क्रम निरंतर बढ़ता जाएगा, जिससे हमारे यहाँ
ग्राहकों का सिलसिला बरकरार रहेगा। ग्राहकों का आवक, साड़ियों की जावक से सीधे
जुड़ी है। पुस्तकालय के पाठकों के अधिकाधिक आवक के लिए भी इसकी सामाग्रियों –
पुस्तक, पत्र-पत्रिकाएँ आदि – की पूरी की पूरी जानकारी कार्यालय के सदस्यों तक
पहुँचाने के प्रयास आवश्यक हैं।
लगभग कार्यालयों में एक या एक से अधिक
दैनिक समाचार पत्र नियमित रूप से आते हैं। दैनिक समाचार पत्र की उम्र एक दिन की
होती है। प्रायः दूसरे दिन पाठक पहले वाले दिनों के अंक पढ़ना नहीं चाहते हैं।
पहले वाले अंक कार्यालय के स्टॉक में पड़ा रहकर रद्दी के भाव में बेच दिये जाते हैं।
पुराने अंकों का इस्तेमाल भी ‘प्रिंट रिच इन्वॉयरमेंट’ के लिए किया जा सकता है। अक्सर समाचार पत्रों में कुछ खबरें उत्सुकता पैदा करने वाली
होती हैं। ये खबरे बासी नहीं होती हैं। जैसे कि किसी व्यक्ति की अद्भुत व्यक्तिगत
उपलब्धि, सामाजिक क्षेत्रों में उसके द्वारा किये गये अद्वितीय कार्य अथवा
सामाजिक, पर्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिकी आदि से जुड़ी खबरें, लेख आदि का
सरोकार सभी से होता है। इन खबरों, लेखों के कतरनों को इकट्ठा करके इसे कार्यालय के
किसी सार्वजनिक क्षेत्र में जहाँ लोगों की बराबर नजर जाती है यथा – उपस्थिति
पंचिंग मशीन के आसपास, मुख्य द्वार के करीब आदि जगहों पर नियमित रूप से साप्ताहिक
अथवा पाक्षिक अवधि में प्रदर्शित किया जा सकता है।
लोगों का ध्यान इस पर जाना स्वाभाविक है। अक्सर
प्रिंट चीजें लोगों का ध्यान खीचती हैं। इन्हें लोग स्वाभाविक रूप से देखते हैं और
पढ़ने की कोशिश करते हैं। कई लोग केवल मोटे-मोटे अक्षरों में लिखे हेडलाइन्स को
पढ़ेंगे, तो कुछ लोग हेडलाइन्स को पढ़कर पूरी खबर से रूबरू होना चाहते हैं।
समय-समय पर लोगों का इस ओर ध्यान इंगित करने से पूरी खबर पढ़ने वालों की संख्या
बढ़ती चली जाती है। इस प्रक्रिया में कर्मचारियों की भाषा पर अधिकार स्वाभाविक रूप
से बढ़ता चला जाता है। एमएमटीसी, क्षे.का. – चेन्नै में यह पाया गया कि कई लोगों
को खबर की इन कतरनों के अगले अंक का इंतजार रहता है।
समाचार पत्र के इन्हीं कतरनों के समान ‘व्हाइट बोर्ड’ का प्रयोग भी
कार्यालय परिसर को प्रिंट रूप से समृद्ध करने में किया जा सकता है। जगह की सुविधा
के अनुसार निश्चित आकार के ‘व्हाइट बोर्ड’ को कार्यालय के सार्वजनिक क्षेत्र में जहाँ
लोगों का अक्सर ध्यान जाता है, लगाया जाए। तत्पश्चात बोर्ड पर प्रसिद्ध कविता,
गजल, श़ेर आदि की चंद प्रसिद्ध पंक्तियाँ साप्ताहिक अथवा पाक्षिक रूप से लिखा जाए।
ये पंक्तियाँ अपने प्रवाह के कारण जल्द ही जुबान पर बस जाती हैं, जिससे इसे
बार-बार दुहराने में एक आनंद और संतोष की अनुभूति होती है। साथ ही ये पंक्तियाँ
विशेष प्रसंग से जुड़े होने के कारण, दैनिक जीवन में उस प्रसंग से गुजरने पर स्वतः
ओठों पर आ जाती हैं। साथ ही कविता की पंक्तियों के गहरे भाव और बहुस्तरीय अर्थ
होने के कारण, यह पाठकों के मन में कौंधती है।
पाठक इसके अर्थों
का अनुमान लगाते हैं और एकाधिक अर्थ तक पहुँचने की कोशिश में अपने साथियों से
चर्चा करते हैं। इससे विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर बातचीत तो होती ही है साथ ही
एक साहित्यिक माहौल बनता है। इसके द्वारा कार्यालय के सदस्यों का एक से अधिक
शब्दों, वाक्य-विन्यासों से परिचय होता है और वे अनजाने ही साहित्य के पाठक बनते
चले जाते हैं जिससे उनकी संवेदना का विस्तार होता है। बोर्ड पर कविता के अलावा लोकोक्ति, मुहावरे,
प्रेरक पंक्तियाँ आदि भी लिखा जा सकता है।
वर्तमान समय में सभी के जीवन में तकनीक
का उपयोग बढ़ता जा रहा है। तकनीक के पहिये व्यक्ति, समाज और देश की गाड़ी को विकास
के राजमार्ग पर ले जाते हैं। तकनीक के इसी अनिवार्य आवश्यकता के मद्देनज़र
प्रत्येक कार्यालय में कर्मचारियों को कंप्यूटर उपलब्ध कराया गया है, इंटरनेट,
ईमेल, प्रोजेक्टर आदि की सुविधा दी गयी है। इन तकनीकी उपकरणों का प्रयोग ‘प्रिंट रिच इन्वॉयरमेंट’ के माहौल को
समृद्ध करने में किया जा सकता है। ईमेल के द्वारा कार्मिकों को नियमित समय के
अन्तराल पर सामाजिक, शैक्षिक, पर्यावरण आदि सरोकारों से संबंधित लघु-कहानियाँ भेजी
जा सकती हैं। लघु कहानियों का चयन पाठकों की रूचि और स्तरानुकूल होना चाहिए। यधपि
कहानी, कविता, नाटक आदि साहित्यिक सामग्रियाँ रूचि परिष्कृत और विकसित करने का
महत्वपूर्ण माध्यम भी हैं। ध्यान रहे कि ये कहानियाँ आठ से दस पंक्तियों अथवा
पन्द्रह से बीस पंक्तियों से अधिक की नहीं होनी चाहिए। धीरे-धीरे थोड़ी बड़ी
कहानियाँ भी दी जा सकती हैं। एमएमटीसी, क्षे.का. – चेन्नै में साप्ताहिक रूप से
ईमेल के द्वारा लघु-कहानियाँ भेजने की शुरूआत की गई। इसके प्रति लोगों में और अधिक
उत्सुकता पैदा करने के लिए विशेष दिवस, मौके आदि के अनुकूल कहानियों का चयन किया जाता
है और संक्षिप्त भूमिका के साथ भेजते हुए, कार्मिकों की प्रतिक्रिया भी आमंत्रित
की जाती है ताकि संवाद की प्रक्रिया शुरू हो सके। इस पर लोगों की प्रतिक्रिया
संतोषजनक है। लगभग प्रत्येक कहानी पर किसी न किसी की प्रतिक्रिया आई। अनौपचारिक
बातचीत में एक से अधिक लोगों ने कहानियों के कथ्यों का जिक्र किया। ईमेल के द्वारा
समयानुसार कहानी के अलावा कार्यालयीन हिंदी के शब्द, वाक्यांश आदि भी भेजे जा सकते
हैं।
जाहिर है तकनीकी का अधिक से अधिक प्रयोग ‘प्रिंट रिच माहौल’ के निर्माण में जादुई
भूमिका निभा सकता है। कंप्यूटर के क्षेत्र में शुरू से अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व होने के कारण कंप्यूटर और इंटरनेट के प्रयोंगों
में अधिकतर लोगों का रूझान अंग्रेजी भाषा की ओर रहता है। इंटरनेट की दुनिया में अन्य
भाषाओं में उपलब्ध सामाग्रियों – जैसे कि आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, स्वास्थ्य,
शिक्षा, मनोरंजन आदि से संबंधित दैनिक खबरें, उनमें उपलब्ध ब्लॉगों, स्तरीय एवं
प्रसिद्ध पत्रिकाओं, कविता, गज़ल, कहानी, लघु-कहानी, नाटक आदि साहित्यिक विधाओं –
की जानकारी लोगों को नहीं रहती है और व्यस्तता की वजह से लोग इसके बारे में
जानकारी प्राप्त करने की विशेष कोशिश भी नहीं करते हैं। इन स्थितियों में
कार्मिकों को इसके बारे में जानकारी देने की आवश्यकता है। जानकारी देने का एक पहल
यह हो सकता है कि उपर्युक्त सामाग्रियों से संबंधित 'वेबसाइटों' की
सूची तैयार करके इसकी विशेषताओं को बताते हुए इन वेबसाइटों को 'विजिट'
करके अधिक से अधिक लाभ उठाने की अपील के साथ ईमेल के द्वारा लो गों को यह सूची
साझा किया जाए। कुछ वेबसाइट्स इस प्रकार हैं -
राजभाषा नियम, राजभाषा अधिनियम, वार्षिक कार्यक्रम और राजभाषा संबंधी अन्य गतिविधियों की जानकारी के लिए :–
शब्दों एवं वाक्यों के हिंदी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद के लिए :–
व्यापार, बाजार, शेयर-बाजार, संपत्ति कर, वस्तु, संबंधी दैनिक समाचार के लिए :-
(1 ) hindi.economictimes.indiatimes.com
(2) khabar.ndtv.com/topic/शेयर-बाजार/news
(4) सोने के दाम, म्यूचुअल फंड, पर्सनल फिनांस, शेयर संबंधी दैनिक समाचार के लिए :–
hindi.goodreturns.in/gold-rates/
सामाजिक,
राजनीतिक, सिनेमा, खेलकूद संबंधी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय दैनिक समाचार के लिए वेबसाइट्स :-
(4)
rajasthanpatrika.patrika.com
कहानी,
लघु-कहानी, कविता, बाल साहित्य, नाटक, लेख, व्यंग्य से संबंधित वेबसाइट्स :–
(4)
www.kavitakosh.org
(5) www.apnimaati.com
लोग इन ‘वेबसाइटों’ को सर्च कर रहे हैं या नहीं अथवा उसमें कोई
बाधा आ रही है, इसके लिए कार्मिकों से व्यक्तिगत रूप से बात की जाए। एमएमटीसी,
क्षे.का. – चेन्नै में एक से अधिक कार्मिकों ने साझा किये गये इस सूची के
वेबसाइटों को विजिट करने के अपने अनुभवों को बताते हुए कहा कि ‘थोड़े फुरसत के क्षणों में इन वेबसाइटों के विजिट से मुझे
ताजी खबरों की भी जानकारी मिल जाती है तथा इससे हिंदी भाषा के विभिन्न क्षेत्रों
के शब्दों और वाक्य-विन्यासों से परिचय प्राप्त होता है।’
सिनेमा
आज के जीवन का अभिन्न अंग है। यह न सिर्फ मनोरंजन करता है, बल्कि इसके द्वारा भाषा
भी निखरती चली जाती है। इसके अस्वादन में दृश्य और श्रव्य दोनों ज्ञानेंद्रियाँ
सक्रिय रहने से यह दिलों-दिमाग में गहरे रूप से अपनी पैठ बना लेता है। परंतु
कार्यालयों में सिनेमा प्रदर्शन का नियमित आयोजन करना कार्यालय के अनुकूल नहीं है।
इसकी एक बड़ी वज़ह सिनेमा की समयावधि है। इसके अतिरिक्त एक मुद्दा कार्यालय की
मर्यादाओं, नैतिकताओं आदि के मद्देनज़र उपयुक्त सिनेमा का चयन है। इन बिंदुओं को
ध्यान में रखते हुए एमएमटीसी के क्षेत्रीय कार्यालय, चेन्नै में ‘साहित्य सिने मंच’ की शुरूआत की
गई। ‘साहित्य सिने मंच’ के अंतर्गत वैसे सिनेमा के प्रदर्शन का नियमित
रूप से आयोजन किया जाता है, जो साहित्यिक कृतियों पर आधारित हैं। इनकी समयावधि
लगभग आधे-घंटे की होती है। प्रेमचंद की लगभग प्रसिद्ध कहानियों का फिल्मी रूपांतरण
गुलजार साहब के निर्देशन में हुआ है। इसमें बूढ़ी काकी, कफन, ईदगाह आदि प्रमुख
हैं। इसी तरह साहित्य की कई प्रसिद्ध रचनाओं - जैसे कि धर्मवीर भारती के उपन्यास ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’, रविन्द्रनाथ टैगोर की
कहानी ‘काबुलीवाला’, उदय प्रकाश की
कहानी ‘मोहनदास’ – का फिल्मी
रूपांतरण बेहतरीन तरीके से हुआ है। साहित्यिक रचनाएँ भाषा में निखार के साथ-साथ
संवेदना को भी व्यापक करती हैं। सामाजिक, राजनीतिक, पर्यावरण आदि विषयों पर सजग
करती ही हैं, साथ ही दैनिक जीवन में छोटी लगनेवाली चीजों के महत्व को बताती है। इस
ओर दर्शकों को मोड़ने के लिए फिल्म प्रदर्शन के बाद 15-20 मिनट की छोटी-सी चर्चा
रखी जा सकती है ताकि कार्यालय के माहौल में ‘वाद-विवाद-संवाद’ की स्वस्थ्य परंपरा का विकास हो सके और जाने-अनजाने
कार्मिक हिंदी भाषा में दक्षता प्राप्त करते हुए इसके अधिक से अधिक प्रयोग में
सहजता महसूस कर सकें।
- डॉ. सौरभ कुमार
उप प्रबंधक (राजभाषा)
एमएमटीसी, क्षे.का. – चेन्नै
संपर्क सं. – 9884732842
ईमेल – saurabh@mmtclimited.com
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