हिंदी में तकनीकी विकास अवश्यंभावी है
हिंदी
में तकनीकी विकास होना अवश्वयंभावी है और वह तकनीकी कारणों की तुलना में आर्थिक-सामाजिक-राजनैतिक परिस्थितियों से अधिक प्रेरित है। भारतीय भाषाओं में हमारा ज्यादा ध्यान कंटेन्ट के उपभोग, संचार और सोशल नेटवर्किंग पर है। जैसे भारत में यू-ट्यूब पर
देखे जाने वाले कुल वीडियो में से 90
प्रतिशत भारतीय भाषाओं में होते हैं। फेसबुक के उपभोक्ताओं की दृष्टि से भारत का पहला स्थान है जहां
पर उसके 27 करोड़ प्रयोक्ता हैं। व्हाट्सएप के बीस करोड़ सक्रिय मासिक
प्रयोक्ता भारत से आते हैं। भारतीय भाषाओं के स्मार्टफोन एप डेली हंट के नौ करोड़
से अधिक प्रयोक्ता हैं। इस तरह के प्लेटफॉर्मों के अपने लाभ हैं, जैसे यू-ट्यूब जैसे माध्यम न सिर्फ मनोरंजन के प्रधान माध्यम बन रहे हैं
बल्कि शिक्षण, कौशल विकास और जागरूकता बढ़ाने में भी उनकी भूमिका है। अब जरूरत
है कि भारतीय भाषाओं के प्रयोक्ता तकनीक का उत्पादकता के लिए भी जमकर
इस्तेमाल करें-यानी अपने दफ्तर के कामकाज में, बेहतर शिक्षा पाने के
लिए, सरकारी-गैर-सरकारी सेवाओं के प्रयोग के लिए। एक और सवाल जो
मुझे कचोटता है वह यह कि हिंदी का उपभोक्ता भला टेबल के दूसरी तरफ ही क्यों
रहे, यानी उपभोक्ता के रूप में ही?
वह खुद सप्लायर या प्रदाता क्यों न बने? वह खुद तकनीकें निर्मित क्यों न करे,
खुद ई-शिक्षा प्रदान क्यों न करे, खुद सेवाओं का निर्माता क्यों न बने?
संक्षेप में कहें तो टिकाऊ तकनीकी विकास
और डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने के लिए जरूरी है कि हम भारतीय नई
तकनीकों में निहित संभावनाओं का समग्रता से लाभ उठाएं। हमारे पास मेक इन
इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसे प्लेटफॉर्म मौजूद हैं ही। भारत जितनी बड़ी
तकनीकी शक्तिशाली आज है,
उससे कई गुना बड़ी शक्ति बन सकता है। यदि
हम भारतीय भाषाओं के संख्याबल को सेवा प्राप्तकर्ता से सेवा प्रदाता में तब्दील कर
दें।
संख्या
बल हमारी सबसे बड़ी ताकत है इसलिए
तकनीकें बनती रहेंगी और हिंदी समृद्ध
होती रहेगी। लेकिन खुद को महज बाजार
मानकर बैठे रहना और विकास का काम
दूसरों पर छोड़ देना कोई आदर्श स्थिति
नहीं है। दूसरे लोगों के सहारे नैया
पार नहीं होती। वे उतना ही करेंगे जितनी
कि उनकी अनिवार्यता होगी। संख्याबल
का उत्सव मनाने से आगे बढ़कर हमें खुद
अपनी भाषाओं में तकनीकी प्रगति का
नियंत्रण संभालना होगा। एक उदाहरण देखिए
- बोलने वालों की संख्या के लिहाज
से दुनिया की शीर्ष 200 भाषाओं में से 6 भारत की हैं, जिनमें
हिंदी तीसरे नंबर पर है (हममें से बहुत से लोग इसे दूसरे नंबर पर मानते
हैं)। लेकिन इंटरनेट पर कंटेन्ट के लिहाज से हिंदी का स्थान 41वां है। लगभग 15 साल पहले गूगल के तत्कालीन सीईओ एरिक श्मिट ने कहा था कि आने वाले 5-10 साल
में इंटरनेट पर जिन दो भाषाओं का प्रभुत्व होगा, वे हैं - मंदारिन और
हिंदी। खुश होने के लिए बहुत अच्छा उद्धरण है यह, लेकिन वह अवधि कब की
निकल चुकी है और जहां इस बीच मंदारिन इंटरनेट की 10वीं सबसे बड़ी भाषा बन
चुकी है, हिंदी
अभी भी 41वें नंबर पर है। महत्वपूर्ण बात यह है कि हम बातों से आगे बढ़ें
और वर्तमान अनुकूल परिस्थितियों का अधिकतम लाभ उठाते हुए आगे के लिए सुदृढ़ आधारशिला
के निर्माण में जुटें |
तकनीकी क्षेत्र में हिंदी का दखल
मजबूती से बढ़ रहा है, भले
ही उसमें निहित संभावनाएं और भी अधिक हैं। 5 साल पहले के दौर से तुलना करें तो आज
का समय एक सपने जैसा दिखाई देता है। हाल के वर्षों में
मोबाइल भाषायी तकनीकों के विकास का बड़ा उत्प्रेरक बनकर उभरा है।
कारण भी स्पष्ट है - कुछ ताजा अध्ययन और सर्वेक्षण इस तरफ इशारा करते हैं कि
भारत में इंटरनेट स्थित कंटेन्ट का सर्वाधिक प्रयोग भारतीय भाषाओं में
किया जा रहा है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार 2020 तक और कुछ के अनुसार एक साल बाद,
भारत में
इंटरनेट सेवाओं की खपत के मामले में भारतीय भाषाओं की हिस्सेदारी 75
फीसदी के आसपास
होगी। लगभग इसी अवधि में मोबाइल फोन खरीदने वाले हर
दस में से नौ लोग अपनी प्रधान भाषा के रूप में भारतीय भाषाओं का
प्रयोग कर रहे होंगे। इतनी बड़ी संख्या में उपभोक्ता आ रहे हैं तो उनकी तकनीकी
जरूरतें भी हैं, जिन्हें पूरा करना किसी भी कारोबारी संस्थान के लिए
समझदारी का काम है।
माइक्रोसॉफ़्ट और गूगल जैसी
बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी बढ़ती मांग और जनाकांक्षाओं के मद्देनजर भाषायी
तकनीकी विकास पर ध्यान केंद्रित किया है। लगभग हर दूसरे महीने माइक्रोसॉफ़्ट या
गूगल की ओर से कोई न कोई नया भाषायी अनुप्रयोग, फीचर या सेवा जारी की जा रही है। भारत
सरकार ने भी राष्ट्रव्यापी फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क की स्थापना,
मेक इन इंडिया
और डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से अनुकूल
संदेश दिया है। डिजिटल इंडिया के नौ में से तीन स्तंभों में भाषायी
तकनीकी विकास की प्रासंगिकता है। इसका परिणाम यह हुआ है कि अब निजी
कंप्यूटर पर लगभग वह सब कुछ करना संभव है जो अंग्रेजी या दूसरी यूरोपीय भाषाओं
में किया जा सकता है।
बात टेक्स्ट इनपुट,
फॉन्ट और यूनिकोड समर्थन से बहुत आगे जा
निकली है। अब आप विभिन्न आकार के
उपकरणों में (डेस्कटॉप, लैपटॉप, टैबलेट, मोबाइल) तथा ऑनलाइन-ऑफलाइन
भारतीय भाषाओं का उत्पादकतापूर्ण प्रयोग कर सकते हैं। स्पेलचेक से
लेकर ऑटोकरेक्ट, हिंदी थिसॉरस से लेकर पूरे ऑपरेटिंग सिस्टम
तथा ऑफिससूट के यूजर इंटरफेस (मुखावरण,
संदेशों,
मेनू आदि) को हिंदी या दूसरी भाषाओं में परिवर्तित किया जा सकता है। माइक्रोसॉफ्ट ने दृष्टिहीनों के
लिए प्रयुक्त होने वाले नैरेटर नामक सॉफ्टवेयर में भी हिंदी का समर्थन दे
दिया है और 15 भारतीय भाषाओं में ईमेल पतों के इस्तेमाल की सुविधा भी अपने
इको-सिस्टम में दी है। उधर गूगल ने द्विभाषीय वेब सर्च, भारतीय भाषाओं में
ऐड-सेन्स जैसी सुविधाएं शुरू की हैं। फेसबुक,
ट्विटर आदि ने अपना स्थानीयकरण किया है
तो बहुत सारे ई-कॉमर्स पोर्टल भी भारतीय भाषाओं को अपना रहे हैं।
बहुत-सी
भारतीय कंपनियां भी भाषायी तकनीकी विकास
में योगदान दे रही हैं। इनमें
रेवरी,
प्रोसेस 9,
इंडस ओएस,
शेयर चैट,
क्विलपैड,
शब्दकोश,
पाणिनि कीबोर्ड आदि के नाम लिए जा
सकते हैं। इंटरनेट सामग्री के क्षेत्र में भी अधिकांश प्रधान अखबार, पोर्टल आदि भारतीय
भाषाओं में सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं।
माइक्रोसॉफ्ट ने हाल ही में अपने
लोकप्रिय एमएसएन पोर्टल को हिंदी में
प्रस्तुत किया है, गूगल समाचार और बिंग
(माइक्रोसॉफ़्ट) समाचार तो पहले से
ही हिंदी तथा अनेक दूसरी भाषाओं में
उपलब्ध हैं ही। इस प्रकार तकनीकी के उपयोग से हम हिन्दी के उपयोग और प्रचार-प्रसार
बढ़ा सकते हैं |
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