बिहारी के दोहे
1. कनक कनक ते सौ गुनौ, मादकता अधिका ।
उहिं
खाऐं बौराई जग, इहिं पाऐं ही बोराई ।।
2. बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ ।
सौंह
करे भौंहन हँसे, दैन कहै नटि जाइ ।।
3. नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल ।
अली कली
ही सौं बिन्ध्यों आगे कवनु हवाल ।।
4. बाल कहै लाली भये, लोयन कोयन माह ।
लाल
तिहारे दृगन की, पड़ी दृगन में छाँह ।।
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